The world largest archeological museum with 100000 artificial grand Egyptian museum
मिस्र में खुफु के विशाल पिरामिड के पास 1,00,000 कलाकृतियों वाला दुनिया का सबसे बड़ा संग्रहालय का शुभारंभ हुआ है और इसका नाम Great Egyptian Museum रखा गया है। इस संग्रहालय में 1,00,000 कलाकृतियाँ रखी गई है जो मिस्र के संपूर्ण इतिहास को दिखाती है। इसमें “सोने का मुखौटा”, “सिंहासन”, “विशाल प्रतिमाएँ”,“मकबरा” एवं अन्य कलाकृतियाँ दिखाई गई है। इस संग्रहालय का उद्घाटन न सिर्फ पर्यटकों का आकर्षण केंद्र बनेगा बल्कि दुनिया को मिस्र के इतिहास और संस्कृति से परिचित कराने में अहम भूमिका निभाएगा। यह इतना विशाल है कि इसका निर्माण कार्य सन् 2005 में प्रारंभ हुआ था और 20 वर्ष बाद 2025 में इसका निर्माण कार्य पूरा हुआ है।
यहीं इस देश में स्वेज नहर भी स्थित है जो भूमध्य सागर को लाल सागर से जोड़ती है, जो कि यूरोप और एशिया के बीच प्रमुख व्यापार मार्ग है।
मिस्र का इतिहास
'मिस्र' विश्व की सबसे बड़ी नदी "नील नदी" के किनारे बसा देश है इसीलिए इसे 'नील नदी का वरदान' कहा जाता है। मिस्र प्राचीन इतिहास/ प्रागैतिहासिक काल के दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि मिस्र (Egypt) विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में से प्रमुख है एवं मिस्र में स्थित 'गीजा का पिरामिड' आज भी वैज्ञानिकों और अन्य लोगों के लिए रहस्यमयी बनी हुई है। पिरामिड का संबंध मिस्र के प्राचीन काल के राजाओं के कब्र से है और पिरामिड का निर्माण तीसरे राजवंश के शासक फिरिन जोसर ने करवाया था। वहीं मिस्र में 'ममी' के रूप में मृतकों के शवों को संरक्षित करने और लेखन की उत्कृष्ट शैली जैसी तकनीक की भी प्रथा काफी प्रचलित थी किंतु अब यह परंपरा लगभग समाप्ति के कगार पर पहुंच चुकी है। प्राचीन मिस्र की भाषा "कौटिक" भी संरक्षण के अभाव में विलुप्त के चरम सीमा पर है।
कला एवं संस्कृति
प्राचीन मिस्रवासी प्रकृति पूजक थे लेकिन वर्तमान में सिर्फ एकेश्वरवाद (मातृदेवी, पशुपति) को मानने वाले लोग रह गए हैं। प्राचीन मिस्र के लोगों की बड़ी उपलब्धियां रही है जैसे उत्खनन, विशाल पिरामिड, सिंचाई एवं कृषि व्यवस्था, मिट्टी के बर्तन की कलाकारी, स्थापत्य कला एवं अन्य विरासत जो कि मिस्र से दुनिया के अलग अलग कोनों में इसे अपनाया गया। इस प्राचीन सभ्यताओं ने इतिहासकार, यात्री, लेखकों को काफी प्रेरित किया और आधुनिक समय में मिस्र की इस प्राचीन सभ्यता परंपराओं को काफी प्रशंसित किया। प्राचीन काल के उत्तरार्ध तक अफ्रीका क्षेत्र की खानाबदोश जनजाति नील नदी की घाटी में बसने शुरू हुए और तभी से नील नदी मानव जीवनरेखा के रूप में कृषि, अर्थव्यवस्था एवं बढ़ते समाज की रूप में अहम भूमिका निभाया। ज्यादातर मिस्रवासी कृषि से बंधे हुए थे एवं उनके आवास पारिवारिक सदस्यों के लिए परिपूर्ण था और परिवार का मुखिया पिता को माना जाता था और उनके आय से पूरे परिवार का भरण पोषण होता था।
खुदाई के दौरान कुछ ऐसे दस्तावेज प्राप्त हुए हैं जो वहां के सामुदायिक जीवन की भावना को उजागर करता है। प्राचीन मिस्र के लोग कलात्मक उदाहरण को उजागर करने के लिए करीब 3500 वर्षों तक अपनी कलात्मक प्रतिमा का कट्टर रूप से पालन किया और संरचनात्मक संतुलन की भावना पैदा की एवं अपनी कला को सटीकता के साथ निष्पादित किया।
प्राचीन मिस्र के कारीगरों ने भी कला एवं संस्कृति को बढ़ाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया, वे पत्थरों का इस्तेमाल मूर्ति बनाने और अनेकों नक्काशी कारीगरी में उपयोग करते थे जो इनके कला एवं संस्कृति की सुंदरता को बढ़ाते थे। प्राचीन मिस्र के कला का बेजोड़ उदाहरणों में से मंदिर और पिरामिड एक अहम भूमिका निभाते हैं।
धार्मिक विश्वास
प्राचीन मिस्र की सभ्यता में पुनर्जन्म की मान्यता थी। मिश्र के शासकों का शासक दैवीय सिद्धांत पर आधारित था। उनकी मान्यता थी कि उनके ऊपर किसी प्रकार की विपत्ति आने पर देवी देवताओं की पूजा कर उन्हें संतुष्ट करने से उनकी रक्षा होती थी, हालांकि समय के साथ नए देवताओं के बढ़ावे और पदोन्नति के कारण उनके धार्मिक विश्वाश में परिवर्तन होते रहे लेकिन वहां के पुजारियों द्वारा इसे संरक्षण करने के लिए कोई खास प्रयास नहीं किए गए। मंदिरों में पूजा पुजारियों द्वारा प्रशासित होता था एवं सामान्य लोग अपने घरों में मूर्ति की पूजा किया करते थे क्योंकि मंदिर का इलाका आम जनता की दुनिया से अलग था, केवल किसी खास महोत्सव के अवसर पर देवता की मूर्तियों को सार्वजनिक पूजा के लिए मंदिर से बाहर लाया जाता था।
अन्य बातें
प्राचीन विश्व की संस्कृति और स्मारकों ने आधुनिक समय के दौर में पूरे दुनिया में अपनी एक अलग पहचान रखी है। 17वीं और 18वीं शताब्दी में अनेक यूरोपीय यात्री एवं इतिहासकार ने मिस्र की सभ्यताओं एवं संस्कृति के ऊपर अनेकों कहानी की रचना की। हालांकि प्राचीन मिस्र में यूरोपीय व्यवसाय ने इस देश की ऐतिहासिक विरासत को नष्ट कर दिया वहीं कुछ अन्य पर्यटकों एवं उपनिवेशियों ने इस पर अपना सकारात्मक परिणाम दिए। 19वीं शताब्दी में मिस्र सरकार और पुरातत्वविदों ने खुदाई प्रारंभ किया और सांस्कृतिक विरासत के महत्व को मान्यता दी।



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