भारत समुद्र के नीचे Underwater lab का करेगा शुभारंभ, जाने क्या है वजह
आज हम बात करने वाले हैं एक ऐसे मिशन के बारे में जो भारत की सुरक्षा और वैश्विक प्रतिष्ठा को उच्च स्तर पर पहुंचाने में मदद करेगी। भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा आकाश में अपना परचम लहराने के बाद भारत समुद्र की गहराई में इतिहास रचने की ओर अग्रसर हो रहा है। भारत ने वैज्ञानिक उपलब्धि को बढ़ावा देने और समुद्र में नए अनुसंधान को सफल बनाने और वैज्ञानिक अनुप्रयोग को मजबूत करने के उद्देश्य से हिंद महासागर में 6000 मीटर की गहराई में विश्व की सबसे गहरी Underwater अनुसंधान प्रयोगशाला बनाने की योजना तैयार की है और इसकी घोषणा कर दी गई है। यह परियोजना देश के स्वतंत्रता की 100वीं वर्षगांठ का प्रतीक साबित होगा जो 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है उसे पूरा करने के लिए यह एक बड़ी पहल होने वाली है। 6000 मीटर में पाए जाने वाले वायुमंडलीय दाब को सहन करने के लिए 80 मिमी. टाइटेनियम एवं अन्य मिश्र धातु से इसकी ऊपरी परतों का निर्माण किया जाएगा।
हालांकि पानी के अंदर ऐसी परियोजना को सही तरीके से स्थापित करना काफी मुश्किल होता है, मिशन की शुरूआत केवल 500 मीटर गहराई में testing के तौर पर Module Design किया गया है जो 20 घंटे से अधिक समय तक 3 वैज्ञानिकों के रहने के लिए तैयार किया गया है। शुरुआती दौर में यह मॉड्यूल दाब प्रतिरोध, सुरक्षा प्रणाली जैसी उन्नत तकनीकों की परीक्षण करेगा। यह Program भारत की वैज्ञानिक क्षमताओं के लिए महत्वपूर्ण है जो गहरे समुद्री क्षेत्र में अग्रणी स्थान हासिल करेगा।
चर्चा में क्यों
वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए समुद्र में underwater lab स्थापित किया जाएगा जहां वैज्ञानिक समुद्री वातावरण के अंदर रह कर Research कर पाएंगे। यह कार्यक्रम भारत का पहला मानवयुक्त महासागर मिशन है। समुद्र की वास्तविक गहराई 200 मीटर के बाद से ही मानी जाती है और समुद्र के अंदर 6000 मीटर में जाना अपने आप में बड़ी चर्चा की विषय है क्योंकि भारत ऐसा पहली बार कर रहा है और इतनी गहराई में अत्यधिक दवाब को सहन कर इसका सफल परीक्षण करना देश के लिए गर्व की बात होगी अगर यह सफल होता है तो Final Module को 6000 मीटर की गहराई में स्थापित किया जाएगा और ऐसा करने वाला भारत पहला देश होगा।
भारत का समुद्रयान मिशन
यह मिशन India के समुद्रयान कार्यक्रम का हिस्सा है जिसकी कुछ समय पहले घोषणा की गई थी और इस परियोजना के विकसित होने से कई तरह के दुर्लभ खनिजों की खोज और अन्य महासागरीय घटनाओं का भी पता लगाया जा सकता हैं और साथ ही महासागरीय तापीय ऊर्जा का अध्ययन करने में भी काफी आसानी होगी। Deep Ocean Mission की घोषणा केंद्र सरकार की ब्लू इकॉनमी पहल के तहत पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा 2021 में की गई थी। इस मिशन का उद्देश्य महासागरीय संसाधनों की खोज को उजागर करना और उसे दुनिया के सामने प्रस्तुत करना है। इस कार्यक्रम के लिए 5 वर्षों में 4077 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं।
मिशन के 6 प्रमुख घटक
•समुद्र की गहराई में खनन और मानवयुक्त प्रौद्योगिकी मिशन का विकास
•महासागर जलवायु परिवर्तन सेवाओं का विकास
•गहरे समुद्र में जैव विविधता की संरक्षण के लिए विकास
•सर्वेक्षण और अन्वेषण
•ऊर्जा और ताजे पानी की खोज
•जीव विज्ञान के लिए उन्नत समुद्री स्टेशन
Dissolved Organic Matter के तहत 9 मिशनों में से एक है जिसका उद्देश्य महासागरों से खोजी गई सजीव और निर्जीव संसाधनों को इस्तेमाल करने के लिए अनुमति देना है।
इस कार्यक्रम के तहत राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT) चेन्नई द्वारा विकसित मानव चलित पनडुब्बी वाहन 'मत्स्य 6000' नाम की एक मानवयुक्त पनडुब्बी विकसित की जा रही है जो 3 लोगों के साथ इस गहराई में सफलतापूर्वक गोता लगाने में सक्षम है और यह स्वदेशी रूप से विकसित की जा रही है अतः हम यह भी कह सकते हैं कि आत्मनिर्भर भारत पहल से यह तकनीत विकसित करना देश के लिए बड़े गर्व की बात होगी।
परियोजना से संबंधित अन्य खबर
भारत ने सितंबर 2016 में हिंद महासागर में International Seabed Authority (Head Quarter - जमैका ) के साथ 15 वर्ष के Contract पर हस्ताक्षर किए थे, इस कॉन्ट्रैक्ट से भारत को अगले 15 वर्षों तक हिंद महासागर में 10 हजार किलोमीटर तक महत्वपूर्ण खनिज जैसे कोबाल्ट, मैंगनीज, निकेल, आयरन हाइड्रॉक्साइड की खोज करने की अनुमति दी गई थी।


Comments
Post a Comment